Wednesday, April 9, 2014

FB 546 - a poem by my Father sent on this platform by a follower ... thank you ..
यहाँ सब कुछ बिकता है , दोस्तों रहना जरा संभाल के !!!
बेचने वाले हवा भी बेच देते है , गुब्बारों में डाल के !!!
सच बिकता है , झूट बिकता है, बिकती है हर कहानी !!!
तीन लोक में फेला है , फिर भी बिकता है बोतल में पानी!!!
कभी फूलों की तरह मत जीना,
जिस दिन खिलोगे... टूट कर बिखर्र जाओगे ।
जीना है तो पत्थर की तरह जियो;
जिस दिन तराशे गए... "खुदा" बन जाओगे ।।
--हरिवंशराय बच्चन


लेकीन  बिकता  नहीं ईमान !